सिनेमा: मनोरंजन:
मनोरंजन के आधुनिक साधनों में सिनेमा आज सर्वाधिक लोकप्रिय
विधा है, क्योंकि मानव की आंतरिक एवं बाह्य प्रकृति के सजीव
चित्रण हेतु इससे बेहतर कला का कोई अन्य माध्यम नहीं है। इसके
अलावा आम आदमी की मनोरंजन की सहज वृत्ति की संतुष्टि के
लिए भी आज के युग में यह एक सस्ता, सुलभ और असरदार साधन
है।
कथा साहित्य की भांति सिनेमा में भी कथानक, पात्र, संवाद, वातावरण,
भाषा शैली व उद्देश्य जैसे तथाकथित तत्व विद्यमान होते हैं, पर उसके
अध्ययन के लिए मात्र तात्विक सनेमा पर लेखक के अलावा पटकथाकार,
निर्देशक, नृत्यनिर्देशक, संपादक, गीतकार, संगीतकार, आदि अनेक
प्रतिभाओं के हस्ताक्षर होते हैं। कहानी को उतने लोग एक साथ नहीं पढ़ते ;
जितने एक साथ सिनेमा देखा करते हैं। इन दर्शकों में शिक्षित, अर्धशिक्षित,
अल्पशिक्षित तथा अशिक्षित भी सम्मिलित होते हैं, जब कि कहानी पढ़ने
के लिए शिक्षित होना जरूरी होता है।
फिल्म में कहानी दृश्य बिम्बों के रूप में प्रकट होती है। इन दृश्यों की
क्रमबद्ध योजना पटकथा कहलाती है। पटकथा का संबंध देखने से और
साहित्यिक कथा का संबंध पढने से होता है। इस दृष्टि से पटकथा
साहित्यिक कथा की अपेक्षा नाटक के अधिक निकट लगती है। दृश्य-श्रव्य
होने के कारण फिल्म का अधिक प्रभावशाली होना अस्वाभाविक नहीं। अतः
फिल्मों के अध्ययन के लिए साहित्यिक सिद्धांतों के अतिरिक्त भी सोचा
विचारा जाना चाहिए।