गजल: बना देती है:
मौत लम्हों को खतरनाक बना देती है
भूख इंसान को चालाक बना देती है
दामन ए वक्त में ग़म भी हैं और खुषियां भी
जिंदगी उनको इत्तफ़ाक बना देती है
भूख पैसे की भड़क उट्ठे तो धीरे धीरे
कीमती जंगलों को ख़ाक बना देती है
दिल के आंगन में ज़रा सी हवा ए रुसवाई
मौसम ए इष्क को नापाक बना देती है