लोककथा: तीन र्ावाटै कि फिफिरी :
हिंदी अनुवाद:
घर के सभी सदस्यों के खाना खा चुकने पर उसकी सास तीन
पतली सी रोटियाँ वो भी बिना सब्जी के, उसके आगे डाल देती।
रोटी के साथ नमक तक न मिलता उस बेचारी को। दुल्हिन को
कितनी याद आती है अपने मायके की, किन्तु उस लड़की की सास
तो उस बेचारी के माता-पिता का नाम सुनते ही आग बबूला हो उठती।
सभी दुःख उस बेचारी पर एक साथ आ गिरे। जिसे खाने के लिए अच्छा
भोजन न मिले, दो मधुर षब्द भी जिसे अप्राप्य हों वह अपने ही दुःख
में न घुले तो और क्या करे ? विवाह के छः माह बाद ही वह लड़की
षिथिल हो गयी और उसने बिस्तर पकड़ लिया।
जब गाँव में उस लड़की की माँ को अपनी बेटी की खबर मिली तो माँ
की ममता, कोख की आग, बेचारी माँ को लड़की के ससुराल की ओर
खींच लाई। वहाँ पहुँच कर माँ ने देखा कि उसकी बिटिया कृषकाय पड़ी
है खाट पर। अपनी माँ का बोलना सुन कर लड़की ने आँखें खोलीं।
माँ को देखते ही उसकी आँखें छलक आई किसी लबालब भरे नौले (जलाषय)
की भाँति। बड़ी कठिनता से उस लड़की के मुँह से इतना ही निकल पाया:
”माँ, तीन पतली सी रोटियाँ।“ और उसके प्राण पखेरू उड़ गये। मरने के
उपरान्त वह लड़की तीतरी पक्षी बनी जो आज भी कूकती रहती हैः
”तीन पतली सी रोटियाँ, तीन पतली सी रोटियाँ।“