लोकगाथा: गंगू रमोला: 8
हिन्दी रूपान्तर:
राग धवलित गढ़ देखा हवापुरी भवन।
द्वारिका में भगवान की नींद टूट गई।
कृष्ण ने बजाई बाँस की बाँसुरी।
महारानी बोली-
या तो स्वामी की षैय्या में पिस्सू हो गए हैं।
या मुझ से सेवा-टहल नहीं हुई।
रानी, मैंने आज स्वप्न में देखा बद्रीनाथ देष
रमोली के गढ़, बुड्ढे गंगू रमोला की घुमड़ती हुई सेरी।
खीर की सी थाल देखी, दाया के से फूल।
रात खुली, प्रभात हुआ कृष्ण सभा में गए।
मन के मंथर हो गए गात के दुर्बल।
दाहिने-घुटने के दीवान बोले-क्यों हुए दुबले?
कल स्वप्न में देखा रमोली का गढ़।
मेने मन भा गया षस्य भरा सेरा।
कृष्ण जी ने चिट्ठी लिखी संदेषक भेजा।
वह संदेषक चला गया रमोली के गढ़। क्रमशः