उत्तराखण्ड : नदियां :
हिमालय से तीन जल समुदाय जन्म लेते हैं: एक- उत्तर पूर्व में
ब्रह्मपुत्र, दो -उत्तर-पष्चिम में सिंधु-सतलज और तीन- मध्य में
गंगा-काली समुदाय। तीसरे समुदाय की नदियां उत्तराखण्ड में ही
जन्म लेती हैं और इसी से होकर आगे बढ़ती हैं। इस जल समुदाय
का नेतृत्व तीन बड़ी नदियां करती हैं: यमुना, गंगा ; और काली।
ये तीनों पनढाल अंततः गंगा में ही मिलते हैं। पष्चिमी रामगंगा, जो
दूधातोली से जन्म लेकर गंगा में मिलती है, अपने में कोसी तथा
खोह नदियों का पानी भी ले आती है। नयार व्यास घाट में ही गंगा
में मिल जाती है।
सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान की उत्तरी सीमा पर भूमि ऊंची उठने
लगती है। वहां से हिमालय की सबसे निचली श्रेणी आरंभ होती है,
जिसे महाभारत के सभापर्व 27/3 में उपगिरि कहा गया है। इसका
वर्तमान नाम षिवालिक है। जहां से यह श्रेणी आरंभ होती है, वहां
मैदान की उंचाई प्रायः 800 फीट से 1000 फीट तक मिलती है।
षिवालिक की षाखाएं/डांडे तथा उनके भीतर की दून घाटियां और
ढालें दक्षिण से उत्तर की ओर लगभग 25 मील से 50 मील तक
चौड़ाई में फैली हैं। षिवालिक की औसत उंचाई लगभग 3000 फीट है।
इससे आगे लघु हिमालय श्रेणी आरंभ हाती है। वह भी षिवालिक श्रेणी
के समान ही तथा लगभग उसी के समानांतर पष्चिम से पूर्व की ओर
फैली है। इसे महाभारत में बहिर्गिरि कहा गया है। इसकी औसत उंचाई
6000 फीट से अधिक है। हिमालय के अनेक प्रसिद्ध स्थान, यथा –
श्रीनगर/कष्मीर, डलहौजी, पालमपुर, षिमला, चकरौता, मसूरी, नरेन्द्र
नगर, पौड़ी, अल्मोड़ा, रानीखेत और नैनीताल आदि इसी श्रेणी पर स्थित हैं।