कविता : क़त्ल :
घर के खिड़की और दरवाज़े
या फर्नीचर कभी पेड़ थे
चिड़ियों का प्रिय रैन बसेरा
कीड़ों का संसार सुहाना
बिजली के तारों से ऊपर
गिलहरियों के ऊँचे घर का
खुल-ए-आम जब क़त्ल हुआ था
परेशान हो गयीं हवाएं
सख्त जड़ों का रोना सुनकर
मिटटी के भीतर का पानी
सारा दिन बेचैन रहा था
कुदरत को गुस्सा आया था