लोकगाथा: गंगू रमोला: 7
हिन्दी रूपान्तर:
(उसने खोले) सोने के खम्भों (में टिके हुए) रजत के द्वार।
देवी का भण्डार झाड़ा।
पहली बार बाबिल (घास से), दूसरी देव रिंगाल से।
तीसरी बार तुष्यार (के पत्तों से), चैथी बार मयूर पंख से।
एक चुटी मिट्टी से सौ चूल्हे लीपे।
(और) दीपक जगाया, सिदुवा-विदुवा के भन्डार।
जाग-जाग दियड़ा, तू सारी रात जाग।
हे भगवान! दीनबन्धु दीनों के दयाल।
कृष्ण, (एकदिन) यदुवंषियों की सभा में बैठे थे।
प्रभु! (भारत के) दायें तट पर द्वारिका की सभा में।
(उस समय) रमोली के गढ़ में (सिंहासनासीन थे) बुंड्ढे गंगू रमोला।
ओ हो, आधी रात में भगवान को स्वप्न हुआ-
द हो स्वप्न में देखा (उन्होंने) रमोली का गढ़।
स्वप्न में देखी (उन्होंने) गदराई सेरी।
साल जमाल, (और) हंसराज बासमती।
पक्की हुई थी अमाल-बासमती। क्रमशः