गजल : क्या कहें :
वक्त कितना कीमती है क्या कहें
चार दिन की जिंदगी है क्या कहें
नालियां नहरें बनीं नदियां बनीं
मौसम ए दरियादिली है क्या कहें
काटकर जंगल बसा दीं बस्तियां
सब्र की कितनी कमी है क्या कहें
खो दिया ईमान पैसे के लिए
आजकल का आदमी है क्या कहें