उत्तराखण्ड: हिमालय:
अस्त्युत्तरस्यां दिषि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः।
पूर्वापरौ तोयनिधीवगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः।। कुमारसंभव 9.9
रामायण के अनुसार उत्तर दिशा हिमालय रूपी आभूषण से विभूषित है।
वहां अत्यंत दुर्गम प्रदेष एवं नदियों की उपत्यकाएं हैं। उत्तर में मद्र,
काम्बोज, यवन, षकों एवं दरदों के देष हैं। लोध्र और पद्मक की झाड़ियां
एवं देवदारु के वन हैं। देवताओं और गंधर्वों से सेवित सोमाश्रम से आगे
ऊंचे षिखर वाला काल नामक पर्वत है। उसके आगे सुदर्षन पर्वत है,
जिस पर अनेक वन, निर्झर और गुफाएं हैं।
आगे एक निर्जन मैदान है; जिस पर नदी, पर्वत वृक्ष और जीव-जंतुओं का
अभाव है। उस दुर्गम क्षेत्र से आगे ष्वेतवर्ण का आनंद से रोमांचित कर देने
वाला कैलास पर्वत है। उसके पास ही विषाल सरोवर है, जिसमें कमल और
उत्पल खिलते हैं, हंस और कारंडव आदि जलपक्षी तैरते हैं तथा अप्सराएं
जलक्रीड़ा करती हैं। वहां विष्व के वंदनीय एवं धनदाता कुबेर गुह्यकों के साथ
विहार करते हैं।
उत्तराखण्ड हिमालय में ऋषभ पर्वत और कैलास षिखर के मध्य में औषधि
पर्वत वर्णित है। युद्ध में इंद्रजीत के वाणों से आहत होकर श्रीराम, लक्ष्मण
तथा समस्त वानर सेना मूर्छित पड़ी थी। जांबवान ने हनुमान से आग्रह किया
कि वे तुरंत आकाष मार्ग से औषधिप्रस्थ पहुंचें और वहां से मृतसंजीवनी,
विषल्यकरणी, सुवर्णकरणी और संधानी नामक महौषधियों को उखाड़ लाएं।
महाभारत के सभापर्व में उत्तराखण्ड की जनजातियों द्वारा युधिष्ठिर के
राजसूय में अन्य उपायनों के साथ कैलास की महौषधियों को भी लाकर
देने का वर्णन है। निष्चय ही प्राचीन काल में इन महौषधियों की बड़ी मांग
रही होगी। धौली गंगा के पूर्वी तट पर स्थित द्रोणगिरि पर्वत को रामायण
का औषधिप्रस्थ माना जाता है।