पर्व : सहिष्णुता :
कृषि प्रधान देश की यज्ञ संस्कृति के अनुरूप
नई फसल से पूजित गीतों और रंगों का यह
उत्सव जन-गण-मन में ऐसा उन्माद भरता है,
जिसके ताप से सारे द्वेश होलिका की भांति
भस्म हो जाते हैं और प्रेम जल से सभी भेद
-भाव प्रक्षालित हो जाते हैं।
मन को प्रफुल्लित कर देने वाली सद्भावनाओं
से अनुरंजित इस पर्व के मूल में अवस्थित
सहिष्णुता हमारी संस्कृति की ऐसी खासियत
है, जो जिंदगी में आपसी मुहब्बत की वकालत
करते हुए ज्यादा से ज्यादा खुशी की सिफारिश
करती है –
हिलि मिलि आवैं लोग लुगाई
भई महलन मैं भीरा अवध मैं
होरी खेलैं रघुवीरा । बागवान।
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