लोककथा: तीन र्ावाटै कि फिफिरी
मूल कथा: एक गौं में एक गरीब घरै कि चेलि छि। बिचारि क
न त क्वै भाइ छि न क्वै काकश्बाड़। जब नानि नानी छि त वीक
बाबु लै गुजरि गौछि तब बटिक वीकि इजैल उकैं पालि भै। रान
रनकुलि सैंणि। बोलश्बुलि करि बेर कबखतै एकौलि खानेर भै, कबखतै
दुकौलि। बड़ा दुखैल वील आपणि चेलि पालि। जब चेलि सयाणि, बेउंण
उमरै कि है गई त वीक मांगणिं कतुक उंण लाग।
कूनीं, चेलिक मांगणि और डाइक हिलकूंणि। पर ब्या वांई हुनेर भै जां
भाग लड़ि भै। वि चेलिक ब्या लै दूर सहर में एक खानपिन घर में है
गे। भल कारबार भै, ढ़िपुटाकै कि के कमीं निं भै। उ चेलिक ब्या क
बाद गौं पनैंकि सबै सैंणीं कूनेर भैन कि भाग हो त यो चेलिक जासा
हो। को कूंछी कि बिन बाबै कि छोरी यासा घर में जालि?
आंगाक घौन कैं सबै देखनीं, करमां का धौं कैल देख? सरास में वीकि
सासु बड़ि चण्डालिंणि भै। घरक सार कामश्काजश्झाड़ झाड़ण, भान मांसण,
लुकुड़ ध्वैंणश्सब उ छोरि कै ख्वार भै। फिरि लै सासुक भल बोल विहुं हरइयै
भै। सासु न त विकैं भल पैंनण हुं दिनेर भै, न भल खांण हुं। बातश्बातन
में विकें तानाश्व्वाला सुणण हुं मिलने भै। क्रमषः