पर्व : टोली :
वो होली खेलने के लिए सामने नहीं आती,
अगर उसका अपना छूटा होता है
या कोई सपना टूटा होता है।
कौन जाने, उसके दिल पर क्या गुजरती है?
जब उसका अतीत उसके वर्तमान को
हंसने-खेलने से रोकता है तो वह हालात
से समझौता भी कर लेती है। अपनी-अपनी
किस्मत है ये कोई हंसे कोई रोए,
रंग से कोई अंग भिगोए कोई अंसुवन से नैन भिगोए।
लेकिन होली के मस्तानों की टोली खुशी के इस सालाना
मौके पर किसी को मायूस नहीं देखना चाहती,
उदास नहीं रहने देना चाहती –
रहने दो यह बहाना
क्या करेगा जमाना
तुम हो कितनी भोली
खेलेंगे हम होली । कटी पतंग।