कबीर वाणी:
अद्वैत:
तेरो स्वामी त्वेइ मैं
जसिक फूल मैं गंध
कस्तूरी मृग जस किलै
झाड़म हैंरछै अंध
जसिकैं तिल मैं तेल हूं
जसिकैं डांसि मैं आग
त्यर स्वामी लै त्वेइ मैं
जा्गि संक्छै त जाग
तालम रूणीं कुमुदिनी
चंदरमा अग्गास
जो छू जैको प्राणप्रिय
उ छ वीकै पास