भाषा: कुछ विशिष्ट प्रयोग:
कुमैयाँ के वाक्य विन्यास में प्रचलित अनेक रूप अपनी व्यंजना से
यदि एक ओर कथन को विशिष्टता प्रदान करते हैं, दूसरी ओर बोली
की प्रवृत्ति भी प्रकाशित करते हैं; यथाः
1. कैः दो उपवाक्यों के मध्य प्रयुक्त होकर कै सूचित कथन की
व्यंजना करता है; जैसेः
मि नै जूँ कै उइले पैंली कैहा्ल्छ्यो्।
(मैं नहीं जाऊँगा करके उसने पहले ही कह दिया था)
तु खालै कै इजै ले रो्ट् पकाया्न।
(तू खाएगा करके माँ ने रोटियाँ बनाईं)
2. जैः क्रिया से पूर्व प्रयुक्त होने वाला जै संभावना की व्यंजना करता
है; जैसेः
पंडित्ज्यू आज जै ऊनान। (पंडित जी आज जो आते हैं)
मील जै सोच्छ कि उ लै आलि। (मैंने जो सोचा कि वह भी आएगी)
3. धैंः वाक्यारंभ अथवा वाक्यान्त में प्रयुक्त होकर धैं चुनौती व्यंजित
करते हुए सामर्थ्य को ललकारता है; जैसेः
धैं, अब उ कि कंर्छ? (देखें, अब वह क्या करता है?)
लड़, धैं ! (लड़, देखें । तो सही)
4. पः क्या, कस और कत्थ के साथ प्रत्ययवत् प्रयुक्त होकर प
अज्ञानता की व्यंजना करता है; जैसेः
क्या्प ः पता नहीं क्या
कसप ः क्या पता
कत्थप ः पता नहीं कहाँ
5. पैंः अव्यय अथवा क्रिया के बाद प्रयुक्त होकर पैं आशा की व्यंजना करता है; जैसेः
होइ पैं किलै नै (हाँ फिर, क्यों नहीं)
उ लगै आल पैं (वह भी आएगा फिर)