09 – वेदना मूलक कथाएं: लोक साहित्य में सामान्य जीवन के विविध
प्रकार के सुख दुख का मर्मस्पर्षी वर्णन मिलता है। कभी कभी कोई विपत्ति
ग्रस्त पात्र जब किसी असहनीय वेदना को अपने मन तक सीमित नहीं रख
पाता, तो पषु पक्षियों को ही अपना साझीदार बना लेता है। कुमाऊं की कुछ
लोक कथाओं में मानव के मन की वेदना कुछ पक्षियों की कूक के रूप में
अमर हो गई है। उदाहरण –
लोककथा : पुर पुतई पुरै पुर
मूल कथा: चैता का म्हैंण जब बण धुरन में काफल पाकण लागनीं, दिनन में
भुरभ्वैं लागैं और ब्याल उदेखि है जानीं त एक चड़ डानि डानि काफइ काफइ
‘‘पुर पुतई पुरै पुर, पुर पुतई पुरै पुर’’ कूंण सुंणींछ। हर साल चैता का म्हैंण
भरि जब तलक काफल रूनीं यो चड़ एसिकै बासण सुणींछ। जब काफल पुरी
जानीं त फिरि यो चड़ नि देखींन। यो चाड़ै कि लै एक काथ छु।
एक सालै कि बात छु जब चैता का म्हैंण काफलाका बोट फलनै ल लदि रूंनी,
एक गौं कि सैंणि रतिव्यांण डाली ल्हि बेर काफल टिपण बण हुं गे। वीक वां बटी
उण तलक धोपरि है गेछी। गौं घरै कि सैंणिन कैं बुति बटिक कां फुरसत। घर में
ऐबेर काफलै कि छापरि बिसै, खाणैं कि बुति करि और फिरि गाड़न में धांण करण
हुं बटींणि। जाण बखत आपणि नानि थैं कै गे यो काफला का डालै कि फाम करियै,
खयै झन, ऐबेर मैं आफि द्यूंल।