कविता: करूं:
अधरों से अव्यक्त भाव को
लेखन में स्वीकार करूं
आषा की नाव से समय का
सागर कैसे पार करूं
जब से देखा तुमको तब से
लोग देखने लगे मुझे
किससे अपनी नजर चुराउं
किससे आंखें चार करूं
मन की आंखों से तो तुमको
रोज निहारा है लेकिन
आओ आज तुम्हें षब्दों की
आंखों से साकार करूं
वर्णन करूं यथार्थ तुम्हारे
तन का अंतर्मन का भी
नूतन अभिनव उपमाओं से
वर्णन का श्रंगार करूं