भाषा: अन्य प्रयोग:
करण का प्रयोग प्रायः कर्ता और कर्म के बीच किया जाता है, जैसेः हौल्दार
बनका्टिले् रुख काटन्नौ यानी हवलदार कुल्हाड़ी से पेड़ काट रहा है। सम्प्रदान
कर्ता के बाद करण से पहले भी प्रयुक्त होता है और क्रिया से पहले भी जैसेः
रमेस मनिआडरैले घर खन पैंस भेंज्छ – रमेश मनीआर्डर से घर के लिए पैसे
भेजता है अथवा रमेस घर खन मनियाडरैले् पैंस भेंज्छ – रमेश घर के लिए
मनीआर्डर द्वारा पैसे भेजता है। अपादान का प्रयोग संज्ञा से पूर्व भी होता है
और क्रिया से पूर्व भी किया जाता है जैसेः आज रुख है तम्मान आड़ु़ झड़ि रयान-
आज पेड़ से तमाम आड़ू झड़े हैं। इन आड़ु रुख है झड़ि र्यान – ये आड़ू पेड़ से
झड़े हैं। अधिकरण का प्रयोग प्रायः क्रिया से पहले होता है¬ जैसेः सुरेस नौल मैं
नैन्नौ – सुरेश जलाशय में नहा रहा है।
सामान्यतः विशेषण विशेष्य से पूर्व और क्रिया विशेषण क्रिया से पूर्व प्रयुक्त होते हैं
और परसर्ग प्रायः संज्ञा/सर्वनाम के बाद ही आया करते हैं। स्वीकृति वाचक अव्यय
का वाक्य के प्रारंभ में प्रयोग किया जाता है – होइ, म्यर काम हैगो (हाँ, मेरा काम
हो गया)। निषेध् वाचक अव्यय प्रायः क्रिया के पूर्व प्रयुक्त होता है – म्यर काम नै भय
(मेरा काम नहीं हुआ)। प्रश्न अथवा आज्ञा की विशेष स्थितियों में क्रिया के बाद भी
प्रयुक्त होता है; जैसे – तु आलै कि नै? (तू आयेगा कि नहीं?)। तु आ्ए झन (तू
आना मत)।
इसी प्रकार सामान्यतः प्रश्नवाचक अव्यय का प्रयोग भी वाक्यारंभ में होता हैः कि हुन्नौ
– क्या हो रहा है? पर कभी-कभी यह वाक्यांत में भी प्रयुक्त होता हैः के हुन्नौ कि –
कुछ हो रहा है क्या ?
भाव की तीव्रता प्रकट करने के लिए जब वाक्य के किसी अंश पर बल देना हो तो
क्रियापद वाक्यारंभ अथवा वाक्यमध्य में भी आ जाता है; जैसेः
उ खानै नै रय कस्सी कैं – वह खा ही नहीं रहा है किसी तरह।
मेरि बात सुन्नि पड़्लि उनू खन – मेरी बात सुननी पड़ेगी उनको।