उत्तराखण्ड: प्रदेश :
उत्तराखण्ड का पर्वतीय क्षेत्र अपने नैसर्गिक सौन्दर्य तथा भौगोलिक लावण्य
के कारण अपने आप में विषिष्ट है। अनेक पावन नदियों का यह उद्गम
स्थल यक्ष-गंधर्वों की लीला स्थली तथा ऋषि-मुनियों की तपोभूमि के रूप
में प्रख्यात है। एक ओर प्राचीन महाकाव्यों में इस क्षेत्र के अनेक स्थानांे
का वर्णन इसके पौराणिक महत्व को प्रमाणित करता है, तो दूसरी ओर
अलग-अलग समय में यहां आकर रमने-बसने वालों का इतिहास इसके
सांस्कृतिक परिवेष को आलोकित करता है।
प्रत्येक प्रदेष का सांस्कृतिक परिवेष उसे अन्य से भिन्न ही नहीं करता,
विषिष्टता भी प्रदान करता है। उत्तराखण्ड का इतिहास इस बात का गवाह
है कि यहां समय≤ पर अनेक जातियों का आगमन होता रहा है। यही
कारण है कि यहां की संस्कृति में समन्वय एवं सहिष्णुता के अद्भुत लक्षण
विद्यमान हैं। भौगोलिक दृष्टि से यह प्रदेष पौराणिक काल से ही दो भागों
में विभक्त है – पहला केदार खण्ड अर्थात् गढ़वाल और दूसरा मानस खण्ड
अर्थात् कुमाऊं।
कुमाऊं को प्रकृति सुन्दरी का क्रीड़ा प्रांगण कहा जाता है। यहां का उच्च पर्वत
षिखरों, हरी-भरी उपत्यकाओं, वनों-उपवनों, पादपों-लताओं, सरिताओं-निर्झरों
आदि के मध्य सुमनों की गंध तथा विहगों के कूजन से अनुप्राणित पर्यावरण
किसका मन नहीं मोह लेता? यहां की नैसर्गिक षोभा यहां के कर्मठ जीवन को
सरलता प्रदान करती है और यहां की प्राकृतिक सुषमा यहां के निवासियों के मन
में सरसता का संचार करती है। यही कारण है कि यहां के लोकगीतों में अगर
एक ओर श्रम से लथपथ जीवन का मार्मिक अंकन है तो वहीं दूसरी ओर प्रकृति
की छटा से उल्लसित वातावरण का भी सम्यक् चित्रण है।