लोकगाथा: गंगू रमोला 19
‘बिदिया का पुरा, जन पायो भलो नाम।’
द्वी भाई रमोला आया रमोली का गढ़।
बुड़ गंगू रमोला, सभा बैठि र्यान।
जै द्योल-जै द्योल बौज्यू; रमोला कूँनन।
मैंत हुँलो अपुतरी; बौज्यू कैथें कूँछा?
बाबू कई बेर गद्दी नीं सरनीं।
सिदुवा-बिदुवा भभूत फकनन।
एक गोलोभ भूते को रमोली हिरन पै गैछ।
गंगू रे रमोलो बुढ़िया राणि थें पुछन पैंगिछ-
‘होला कैका ई पुतर?’
द्वी नाली बन्दूक, जसा देखी उ जोंली सन्तति।
जैठि राणि कूँछि, म्यरा च्यला छन।