गजल: आस का दीपक
हम समझते थे कि नश्तर का चलाना है बला
जब चला तो ये पता भी ना चला कब ये चला
घाव होने में नहीं लगता कभी कोई बखत
घाव भरने में लगा जो वक्त वो सबको खला
वक्त भर देता है सारे घाव छोटे और बड़े
इसलिए धीरज से थोड़ा काम लेना है भला
जब निराशा का अँध्ेोरा हर तरफ बढ़ने लगे
ए मेरे दिल जैसे तैसे आस का दीपक जला