पर्व : होली
यह मन की उदारता का मनोरंजक पर्व है। संस्कृत का शब्द पर्व हिंदी तक
आते-आते पोर कहलाने लगा, जिसका मतलब होता है गांठ या जोड़।
सामाजिक पर्व समाज रूपी काया के जोड़ ही होते हैं, जो उसे सांस्कृतिक
रूप से मजबूत और टिकाऊ बनाते हैं।
परिवर्तनशील ॠतुओं के अभिनव सौंदर्य से अनुप्राणित पर्वों की आवृत्तियां
जब सामाजिक जीवन की दैनंदिन एकरसता में नए रंग भरती हैं, तब
अंतर्मन में नवस्फूर्ति का संचार होता है यानी रंगों का त्योहार होता है।
तन रंग लो जी आज मन रंग लो –
लाई है हजारों रंग होली
कोई तन के लिए कोई मन के लिए
कोई तो मारे है भर पिचकारी
कोई रंग डारे नजर मतवारी
खाए भीगा बदन हिचकोले
किसी का मन डोले
कहीं मचले जिया साजन के लिए
(फूल और पत्थर)