लोकगाथा : गंगू रमोला 15
ज्योडि़ पांखो लाई है जाँछू कतल।
दिगौ, द्वारीका कि”नज्यूँ सपन है ग्यान।
उठि रानि नसि कुंजानी पातल।
आधाराति बटि तैस बौ पीड़ा है गैछ।
उबकना सूरज, ढलनी रे रात।
कुजानी का भूड़, द्वी बालक खितीतना।
”हमन ढकि जाए इजा ये सूका पातल।
बौज्यू कलेवार दिए-निश्चिन्त है जाला।
हमारा हुनैंकि इजा-जन खोले पोल।
बाराँ का बरस हमीं त्वेस मिली जूँला।
भोलब्यानी भलेवार दी ऐछ कलेवार।
कुँजानी पातल, ऐछ गोग्यूँ कि जमात।
तिसारा रे दिन, आया बार पँथै का जोगी।
गुरू को होकम, ताई आसन लगाछ।
चूलि टेकि रे चैकि ठुण-मुण लाकाड़ा।
धुनी रे जगैछ बयालो उड़ाछ।