गीत : सुबह की हवा :
चाहे गर्मी हो या सर्दी का मौसम
हवा सुबह की बड़ी सुहानी लगती है
अपनी बीन बजाती जब उषा आती
अंधियारे की बंद पिटारी खुल जाती
सूरज के फन के लहराकर उठते ही
मस्त पवन तन छूकर मन खुश कर जाती
सदा एक सी चाहे सुख हो या दुख हो
समदर्शी संतों की बानी लगती है
किरनें कलियों के घूंघट में झांक रहीं
कलियां उजियारे में निज छबि आंक रहीं
उजियारा छोड़े रंगों की फुलझडि़यां
फुलझडि़यां जग में सुंदरता टांक रहीं
सुंदरता पशुओं की हो या मानव की
आंखों को जानी पहचानी लगती है