विशेष : बोलियां :
मनुष्य के सामाजिक होने का प्रमुख कारण उसकी भाषण क्षमता है। वह
अपनीभाषा में ही सोचता, बोलता और सामाजिक संपर्क बनाता है। हिन्दी
संस्कृत केउच्च शिखरों से निकल कर बोलियों की जमीन पर प्रवहमान होते
हुए जब आधुनिकभाषा बनी और स्वतंत्रता प्राप्ति के अनन्तर राजभाषा घोषित
हुई, तब देश के विभिन्नभाषा भाषियों ने न केवल इसे सीखा, वरन् इसमें
साहित्य सृजन भी किया।
हिन्दी भाषी क्षेत्र में आम बोलचाल में विभिन्न बोलियों का भी व्यवहार होता है;
जैसे – उत्तर प्रदेश में खड़ी बोली, ब्रज, कन्नौजी, बुन्देली, अवधी ; मध्य प्रदेश
में बघेली ;हिमाचल प्रदेश में हिमाचली ; उत्तराखण्ड में कुमाउनी, गढ़वाली ;
राजस्थान में जयपुरी,मारवाड़ी, मालवी, मेवाती ; हरियाणा में हरियाणवी ;
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी और बिहार में मगही, मैथिली व भोजपुरी आदि।
हिन्दी देश की एकता का सूत्र होने के साथ-साथ सभी भारतीय भाषाओं के बीच
एकसेतु के समान है। केन्द्रीय भूमिका में होने के कारण वह अपने विकास के लिए
अन्यभाषाओं के उन्नयन के अनुभवों का लाभ भी ले सकती है और उनके उत्थान
की दिशाएं भी आलोकित कर सकती है।