08 – हास्य मूलक कथाएं :
कुमाऊं में समय बिताने के लिए विशुद्ध मनोरंजन करने वाली हास्यमूलक
कथाओं का भी अभाव नहीं है। ऐसी कुछ कथाओं में समय-समय पर नए
नए किस्सों की कडि़यां भी जुड़ती रही हैं। इन कथाओं में ‘फसक’ भी
सम्मिलित हैं, जो कोरी गप्प होने के बावजूद सर्दियों की रातों में आग के
पास बैठकर बड़े चाव के साथ सुनी सुनाई जाती हैं। उदाहरण –
लोककथा : क – घौताक इजार में सांपल 1
मूल कथा : क्वे गौं में द्वि भैंस रूनेर भै। द्वियै काभाक में नौं सिंणुका का
तोडि़ बेर द्वि नि करनेर भै। सारा दिन कती कें बैंठि बेर चिलम गुड़गुड़ै और
क्वीड़ पाथा। फसक मारण में एक में कसर भई न दुहार में।
ह्यूंन में एक दिन उनन बै एक घाम में पुठ लगै बेर हड़ जस पडि़ भै। दुसर
लै डोईनै डोईनै उथ कै ऐ पुज। द्वियै एकनसै मिलि पड़ा त फिरि कि छि। एक
दुसार हुं बोलांण। यार, तु एतुक मोट कसिक छै ? कि खांछै आखिर तु ?
म्यारा त यो खान खानै पिन पिनै मुखाक हाड़ अगास लागि रयीं।
दुसर फसिकियैल जबाव दिः अरे, यो जमान में कि खई, कि पिई। उ त
म्यार बाबु लै एतुकै घ्युं खइ भै। एतुक घ्युं खइ भै कि म्यारा आंग लै उई
घ्युं लागि रौ। देखनैं कन म्यारा हात खुट। कतुक चुपड़ छन, उई बाबुक
खइ घ्यू क वील। खैर योत जि लै भै। पर योत बता, यार तुमारा त भौत
जमीन छु। तु त काम धाम करते देखीनें नैं, आखिर उतुक जमीनकें कमुंछै
कसिक ?