लोकगाथा : गंगू रमोला 13
रमोली-गढ़ की सुनसानी है गैछ।
भिखारी है रयाँ प्रभू, न खानूँ न पीनूँ।
कृष्णज्यू दयाला प्रभु दिया द्वी मुट्ठी कौणिं का।
बुड़ गंगू रमोलो खुटन पड़ँछ।
आज बठे बार बरस बरमचारी रौले।
प्रभूज्ये कि लीला क्या अमृत सीचिंछ।
घर बार छोड़ी गंगू मन्दिर बणाछ।
गंगू कि जाजात, प्रभु वापस करीछ।
बुड़ गंगू ले रमोली में मन्दिर छाछ।
निकाँसी बिजाला सिटीनू औदान।
द्वी मुट्ठी कौणीं का ओदान सिटीनू।
छै मैंणा है ग्यान रानी द’ा मैणा है ग्यान।
जेठी रानौ उँछी कलेवार दिना।
भरपुर महैण रानी सोच में पणँछी।
मरदा का नाम मैं “यौल ले न बैठ्यूँ।
इतनू कलंक, मैंस कसीकै लागछ?