लोककथा : मरी पितर :
हिंदी अनुवाद : एक समय था कि जब घर के बड़े बूढ़े मृत्यु के बाद भी
यदा-कदा अपने बहू बेटों के कारोबार को देखने आया करते थे। पितर भी
अपने घर में होने वाले शुभ कार्यों में, दुःख की घडि़यों में आते थे। अपने
वंशजों के हाल-चाल, उनकी कुशल देख जाते थे।
किसी घर में बुढि़या के देहान्त के बाद बहू अकेली रह गई। जब खेतों में
गोड़ाई-निराई करने का समय आया तो अपनी बहू का हाथ बंटाने के लिए
मरी हुई सास भी लौट आई। एक दिन जब खेतों की गुड़ाई-निराई का काम
समाप्त हो चुका था, सास ने बहू से कहा – ”बहू, ओ बहू, जरा मेरे सिर
में ठूंगे (धीरे-धीरे अंगूठे गढ़ाकर दबाना) तो मार दे। बहुत खुजली हो आई
है सिर पर।“
बहू सास के सिर पर धीरे-धीरे अंगूठे गढ़ाकर दबाने बैठी और कहने लगी –
”सास जी, तुम्हारे शरीर से तो हाड़-मांस जले की दुर्गन्ध आ रही है।“ सास
को बहुत दुःख हुआ कि हमारे ही बच्चे अब हमारे शरीर से दुर्गन्ध का अनुभव
करने लगे हैं। अब मृत्यु के बाद हमें लौट कर इनके पास न आना चाहिये।
सास ने अपनी बहू से कहा – ”भविष्य में तुम लोग जब कभी किसी मृतक की
दाह-क्रिया करके लौटो तो रास्ते में कांटा दबा आना। फिर हम मृतक तुम्हारे पास
लौट कर नहीं आया करेंगे। कहते हैं उसी समय से यह रस्म चली है कि मृतक का
दाह-संस्कार करने के बाद लौटते समय रास्ते में कांटा दबा दिया जाता है। और
उसी समय से पितर अपने बच्चों के पास मंगल कार्यों में, काम के दिनों में उनका
हाथ बंटाने, नहीं आया करते।