लोककथा : मरी पितर :
मूल कथा : पैली बटिक घराका बुडि़ बाडि़ मरिया का बाद लै कमैं कभैं
आपण च्याल-ब्वारिनक काम काज देखण हुं अई कर छि। आपण परवार
वालनाका नक भल कामन में पितर लै उनेर भै। आपण नानतिननै कि
कुशल देखि जानेर भै। एक घरै कि बुडि़ जब मरि गई त उ घर पन ब्वारि
एकली सैंणि मैंस रै गे। जब गोड़ण नेलणा का दिन अया त आपणि
ब्वारिक हात पात सारण हुं मरी सासु लै ऐ।
जब खेतन काम सकी गयो त सासुल ब्वारि थैं कै ः ‘‘ब्वारी ब्वारी,
मणी म्यारा ख्वारा का ठुंग मारि दे त। अत्ती चिलैलि है रैछ।’’ ब्वारि
सासु का ख्वारा का ठुंग मारण बैठि त सासु थैं कूण लागि। ‘‘ज्यू,
तुमन बटिक त किड़हैनि बास ऊंणैंछ।’’ सासु कै नक लागि गै कि
हमारै नानतिन अब हमन बटिक वास चितूंण लागि रई। आब हमन
कैं इनार पास निं ऊंण चैंन।
वील अपाणि ब्वारि थैं कयो – ‘‘आब बटिक जब तुम बुड़ बाडि़न कैं
फुकि बेर आला त बाट मेें कानो च्यापि अया। हम लोग फिर तुमारा पास
निं अइ करूं।’’ कूनी तबै बटिक यो रिवाज छु कि मुरद फुकि बेर अया
त बाट में कानो च्यापि उनीं और तबै बै पितर आपण नानतिननाका काम
काज में धांणि बुति में लै निं उंना।