गजल : वक्त :
ये वक्त किसी का नहीं तेरा है न मेरा
ये शाम निगलता है उगलता है सवेरा
खंजर से तबाही के यहाँ बीज न बो आज
कल को तेरी औलाद का होगा यहीं डेरा
एक वार कुल्हाड़ी का अगर पेड़ पर पड़ा
समझो कि कहीं टूट गया साँस का घेरा
अपना तो खानदान का रिश्ता है पेड़ से
अफसोस कि अपनो में ही शामिल है लुटेरा