कबीर वाणी
सीख
निरमल बूंद अगास है
भैं मैं पडि़ बेकार
हरि है बिछड़्यो आदमी
सत्संगति बिन छार
यो तन त बिसबेल छू
गुरु अमृतै की खान
सीस दि बेर जो गुरु मिलौं
तब लै सस्तो जान
मांगण मरण समान छू
झन क्वे मांग्या भीख
मांगण है त मरण असल
सतगुरु की यो सीख