लोकगाथा : गंगू रमोला 10
मुँख ले जुवाब दिछ सुण भुलि जोलिया,
आज को मुलैजा, भ्वल बटि कौलैत-
तेरि खोरि काटि बेर बद्रीनाथ ज्यू चढूँलो।
निरमुखो जोलिया न्हैगो द्वारीका दिसाँसो।
दिगौ, द्वारीका भगवानूँ ने गरुड़ मगायो।
जा प्वथा गरुड़ तू बद्रीनाथ देश।
रीटी रीटी पंछी आयो रंगीली रमोली।
बुड़ गंगू की सभा, बणी ठाड़ो गयो।
द्वारीका भगवान् बुड़ बामण बँणी।
पछिल-पछिल पुज्या रमोली का गढ़।
ढाई गज जमीन राजा, में कुटिया बणूँछूँ
बुड़ गंगू रमोलो खुकुरी बट्यूँछ।
कालो भौंरो बणी कृष्ण ज्यू न्हैगया गंगू का भितर।
देखी अनघनी कुठेरी लक्ष्मी नीं पाई।
गंगू की लक्ष्मी होली लाखी का रव्वर में।
कुजियाँणी पाताल होली चैंसिङियाँ लाखी।