विशेष : राजभाषा :
भाषा के विकास के साथ-साथ लिपि में भी सुधार होता है। 1904 में लोकमान्य बाल
गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में नागरी लिपि में सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत की
थी। फिर 1935 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में लिपि सुधार के लिए एक
उपसमिति बनाई गई थी। 1947 में उत्तर प्रदेश सरकार ने लिपि सुधार के लिए एक
समिति गठित की। संविधान में राजभाषा का दर्जा प्राप्त करने के अनंतर नागरी लिपि
का सही स्वरूप सामने आया।
आज खड़ी बोली के जिस परिनिष्ठित रूप का शिक्षा, साहित्य, समाचार पत्र, आकाशवाणी,
दूरदर्शन आदि में प्रयोग होता है, वह किसी स्थान या क्षेत्र वि’ोष की नहीं, बल्कि सारे
भारत की भाषा है। विभिन्न प्रदेशों तथा क्षेत्रों की जनता अब भी अपनी आपसी बोलचाल
में स्थानीय भाषाओं का ही प्रयोग करती है, लेकिन उनके व्यापक समाज की भाषा हिंदी
ही है।
एक कारण और कि भारत में अनेक भाषाएं और बोलियां प्रयुक्त होती हैं। उनके बोलने वालों
को जब मातृभाषा भाषियों से दूर शहरों में नौकरी या रोजगार के सिलसिले में जाना या
रहना पड़ा, तब पारस्परिक बोलचाल और सामाजिक व्यवहार के लिए शिक्षा व साहित्य में
प्रचलित हिंदी ही उनके काम आई।