लोकगाथा : गंगू रमोला 9
भोल ब्यानी मोलैवारी, प्रभु सभा में न्है ग्यान।
मन का मदुरा छन, गातै का दुबला।
दैन घुणी दीवान कौला कि भौछा दुबला?
बेलि का सपन देख्यो रमोली को गढ़।
म्यर मन पडि़ गैछ रतङेलो सेरी।
हरी, चिट्ठी लेखि कृष्ण ज्यू ले पठायो जोलिया-
सो भाया जोलिया न्है गो रमोली का गढ़।
बुड़ गंगू रमोलो बैठ्यो उच्ची सिंहासन।
कौ भाया जोलिया, तुमि कथ बटि आया?
कृष्ण ज्यू का जोलिया ले परमाण दियो।
पैलि की पंगति होलि आदलि कुशलि।
दूसरी पंगति प्रभू इसी लेखि राखी-
”मेरा मन लागी गयो रंगीली रमोली।
ढाई गज जमीन राज्य में कणि दी हाले।“
परमाण पढ़न राजा गुस्सा भरी आयो।
आज माँगछ ढाई गज, भल बाँकी माङलो।