लोककथा : को छै रे :
हिंदी अनुवाद : जब तक बूढ़े माता-पिता जीवित थे, दोनों भाइयों का कारोबार एक
साथ था। बूढ़े और बुढि़या के स्वर्गवास के बाद देवरानी जेठानी की आपस में निभी
नहीं और बंटवारा हो गया। गोठ के बैलों का बंटवारा हुआ, खेतों के टुकड़े बाँट लिये,
घर के भांडें बर्तन आपस में बाँट लिये गये। तख्तों के कमरे के भी दो भाग बना दिये
और देवरानी तथा जेठानी अलग-अलग रहने लगीं।
वैसाख के महीने में धान की बुवाई के लिए खेत तैयार किये जाने का काम जोरों से
चल रहा था। हल चलाने वाला हलिया जब खेत जोत चुका तो औरतें हाथों में लकड़ी के
बने डलौटे लिए खेतों में मिट्टी तोड़ने के लिए जाने लगीं। ऊपर का खेत जेठानी का था,
नीचे का खेत देवरानी का था। वैसाख माह की धूप में मिट्टी के डले तोड़ने में हाथ छिले
जा रहे थे। जेठानी ने सोचा यह परेशानी का काम क्यों करूँ। अपने खेत के डलों को
बटोर-बटोर कर वह देवरानी के ख्ेात में डालती रही। देवरानी सुबह से शाम अंधेरा
होने तक खेत में मिट्टी के डले तोड़ने में लगी रहती।