विशेष : महावीर प्रसाद द्विवेदी :
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार
के लिए अनेक राजनेता, पत्रकार, शिक्षाविद व वैज्ञानिक भी आगे आए। इस
अभियान में महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनकी पत्रिका ‘सरस्वती’ की भूमिका
अद्वितीय मानी जाती है। भाषा के परिष्कार की दृष्टि से इस पत्रिका का योगदान
महत्वपूर्ण रहा।
अभी तक हिंदी कविता के लिए ब्रज भाषा का प्रयोग जारी था, पर द्विवेदी जी ने
साहित्यकारों से खड़ीबोली में कविता करवाई और भारतेंदु युगीन भाषा के अनियमित
प्रयोगों को सुधार कर खड़ीबोली गद्य को परिमार्जित किया। द्विवेदी युग के साहित्यकारों
में मैथिलीशरण गुप्त, बालमुकुंद गुप्त, सरदार पूर्ण सिंह, बाबू श्यामसुंदर दास, आचार्य
रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद, चतुरसेन शाश्त्री, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ के नाम विशेष रूप
से उल्लेखनीय हैं; जिन्होंने नई-नई विधाओं में नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए।
हिंदी साहित्य के अलावा हिंदी पत्रकारिता तथा हिंदी सिनेमा ने भी हिंदी को देश के कोने-
कोने तक प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समय के बदलाव के साथ- साथ
आज देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में हिंदी के अनेक रूप प्रकट हो रहे हैं और अहिंदीभाषी
क्षेत्रों के साहित्यकार व पत्रकार भी हिंदी में लिख रहे हैं। स्वदेश के अतिरिक्त विदेश में
भी हिंदी प्रेमियों की कोई कमी नहीं है।