सिनेमा : ममता :
अपने बच्चों को देखकर जब ममता उमड़ती है, तो मां के मुंह से अनायास ही
‘जूही की कली मेरी लाड़ली’ या पिता के मुंह से ‘तुझे सूरज कहूं या चंदा’
निकल जाना अस्वाभाविक नहीं। पर कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं कि उनकी
ममतामयी मां उनके भविष्य के प्रति विशेष सजग रहती हैं – ‘मेरी बगिया की
कली तू सदा ही खिलना, जिन राहों पे मैं चली तू उनपे न चलना’ अथवा कभी
अपने बच्चे के विकास हेतु उपयुक्त वातावरण न होने के कारण चिंतित रहती हैं –
तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूं
और दुआ देके परेशान सी हो जाती हूं
इस संदर्भ में ‘तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा’
कहना सिद्धांत रूप में जितना सरल है, आचरण में उतना ही कठिन। अनाथ बालकों की
बात तो दूर रही, जीवन की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति में उलझे हुए श्रमजीवी माता
पिता के पास न तो अपनी संतान की बेहतरी की ओर ध्यान देने का समय है न ही
सुख सुविधाएं जुटाने की सामर्थ्य ।