लोकगाथा : गंगू रमोला 7
नाई धोई बेर लुकुड़ा सुजूँछि।
मसीना लुकुड़ा हाथ ले मुलूँछि।
मोटि लुकुड़ी सौंरा, मुँगरी खेलूँछि।
मसीना लुकुड़ा बयाली सुकूँछि।
सुनूँ को गडुवा, ध्यारथूम को माटो
गाई को गुबर थमै जाँछि अतुला भनार।
तब खोलँछी सज्या सुनूँ का सँगाड़, रूपा का केवाड़।
देवी का भनार झाड़कूचि लगूँछि।
पैलि को बाबुला, दूसरी द्यो-रिगाली।
तिसरी तोस्यार भुली चैथी मोरपँखी।
एक डाली माटा ले सौ चुला लिपँछि।
दियड़ो जगूँछी, सिदुवा-बिदुवा भनार।
जाग-जाग दियड़ा तू सारी रात।
ए भगवान्, दीनबन्धु दीनूँ का दयाल।
सभा बैठिर्यान प्रभू जदुवंशी सभा।
प्रभू, ए दैनी द्वारिका भग्वानूँ की सभा।