ग़ज़ल : दूर :
सोचते हो तो दूर की सोचो
शाहजाद-ए-हुजुर की सोचो
कल जो लेने को साँस तरसेगा
काश उस बेकसूर की सोचो
रात-दिन जंगलों में दुख पाकर
काम करते मजूर की सोचो
जो हरे पेड़ काट देते हैं
उनके अंधे गुरुर की सोचो
ग़ज़ल : दूर :
सोचते हो तो दूर की सोचो
शाहजाद-ए-हुजुर की सोचो
कल जो लेने को साँस तरसेगा
काश उस बेकसूर की सोचो
रात-दिन जंगलों में दुख पाकर
काम करते मजूर की सोचो
जो हरे पेड़ काट देते हैं
उनके अंधे गुरुर की सोचो