लोककथा : दूर्वाष्टमी :
हिंदी अनुवाद : ब्राह्मण को चिंता हुई। वह पुरोहित जी के पास गया। उन्होंने कहा –
‘यह नक्षत्र फल फूल पेड़ फसल के लिए बुरा है। नवजात शिशु को मार दो। बहू को
मायके भेज दो और बच्चे को नौले के पास दबा दो। बनभाट ने वैसा ही किया।
बहू मायके पहुंची। मां ने कहा – ‘तेरा बेटा हुआ है। यहां क्यों आई है ? मुझे
अपशकुन हो रहे हैं।’ उसने बेटी के लिए खीर बनाई और उसे खिला पिला कर
भेज दिया। जाते समय उसके आंचल में राई के दाने बांधकर कहा – ‘इनको बोती
जाना, पीछे देखती जाना। हरी होगी तो बेटा कु’ाल से होगा, सूख जाएगी तो
मर गया होगा।’
रास्ते में छोटी बहू राई बोती आई, पीछे देखती रही। वह हरी होती गई। चलते
चलते वह थक गई। प्यास लगी। जब नौले में पानी पी रही थी, नवजात शिशु
सीने से आ लगा। उसके गले का दुबड़ टूट गया। बच्चे को लेकर वह घर आई।
घर आकर उसने देखा कि उसके बिस्तर में उसका दूसरा शिशु भी है। अब बनभाट
के दो नाती हो गए।
बहुत ही अच्छा कहानी लिखा है आपने। बहुत खूब।
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