विशेष : भारतेंदु मण्डल :
अभी तक के हिंदी लेखकों ने व्यक्तिगत रूप से भाषा को एक स्वरूप देने का
प्रयास किया था, पर भारतेंदु ने सामूहिक रूप से हिंदी के स्वरूप को स्थिर
करने के लिए साहित्यकारों का एक मण्डल स्थापित किया। इस मण्डल में
भारतेंदु के अतिरिक्त श्रीकृष्ण दास, बालकृष्ण भट्ट, राधाचरण गोस्वामी तथा
बदरी नारायण चैधरी ‘प्रेमघन’ प्रमुख थे, जिन्होंने हिंदी गद्य की अभिनव
विधाओं में सफलतापूर्वक लेखनी चलाई।
भारतेंदु मण्डल के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से एक ओर
हिंदी गद्य की भाषा के परिमार्जन के लिए यथासंभव प्रयास किया और दूसरी
ओर भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा एवं राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने के
लिए अलग-अलग विषयों का चयन किया।
मौलिक लेखन के अतिरिक्त इस युग में बांग्ला, संस्कृत तथा अंग्रेजी से हिंदी
में अनुवाद का कार्य भी संपन्न हुआ, जो खड़ीबोली गद्य के स्वरूप की स्थिरता
की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन
द्वारा भी गद्य की भाषा का प्रचार-प्रसार होता रहा।