ग़ज़ल : सोचो :
सोचना है तो दूर की सोचो
अब न जन्नत की हूर की सोचो
आसमाँ से गिरो जमीन छुओ
राह में मत खजूर की सोचो
जंगलों को उजाड़ने वाले
आदमी के शऊर की सोचो
भूल कर रात के अँधेरे को
सुबह के सुर्ख नूर की सोचो
ग़ज़ल : सोचो :
सोचना है तो दूर की सोचो
अब न जन्नत की हूर की सोचो
आसमाँ से गिरो जमीन छुओ
राह में मत खजूर की सोचो
जंगलों को उजाड़ने वाले
आदमी के शऊर की सोचो
भूल कर रात के अँधेरे को
सुबह के सुर्ख नूर की सोचो