कविता : बाढ़ :
जब जब चुक जाता है
माता का लाड़
धरती के आंचल में
आती है बाढ़
सर्प सी निकलती है
दर्द सी उबलती है
गर्द सी मचलती है
लेकर झंखाड़
शहर गांव फंसते हैं
पंचतत्व हंसते हैं
टूट टूट धंसते हैं
कष्ट के पहाड़
बच्चे रोए घर के
गुस्सा ठंडा करके
सीने में सागर के
खाती पछाड़
बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी।
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