विशेष : भाषा के रूप :
भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885) के सामने खड़ीबोली हिंदी के दो रूप प्रचलित थे,
जिनमें से एक उर्दू से प्रभावित था और दूसरा संस्कृत से। भारतेंदु भाषा में उर्दू या
संस्कृत के शब्दों का सायास प्रयोग करने के पक्षधर नहीं थे और अनायास आ जाने
वाले उर्दू या संस्कृत के शब्दों के अतिरिक्त देशज शब्दों का प्रयोग करने में भी नहीं
हिचकते थे। उनके लिए भाषा उतनी महत्वपूर्ण नहीं थी, जितनी कि उसकी संप्रेषणीयता।
भारतेंदु से पहले की हिंदी में कहीं ब्रजभाषा का प्रभाव झलकता था तो कहीं भोजपुरी का,
कहीं उर्दू का आभास होता था तो कहीं संस्कृत का। शब्दावली के अतिरिक्त व्याकरण,
वर्तनी व विरामचिह्नों के प्रयोग के भी कोई निश्चित नियम नहीं थे। अतः हिंदी का कोई
सर्वमान्य अथवा सर्वग्राह्य रूप स्पष्ट नहीं हो पाया था।