गीत : मानसून :
अफसाने जीवन के
सिक्कों में ही खनके
गांवों में गूंज रहे
किस्से सावन के
शहरों में घूम रहे
बादल बन ठन के
कौन देख पाया
पतझड़ सूखे मन के
मानसून आए हर
माह ही वेतन के
रीते तर होने से
पहले ही मन के
सपने में जरा देर
घुंघरू ज्यों छनके
गीत : मानसून :
अफसाने जीवन के
सिक्कों में ही खनके
गांवों में गूंज रहे
किस्से सावन के
शहरों में घूम रहे
बादल बन ठन के
कौन देख पाया
पतझड़ सूखे मन के
मानसून आए हर
माह ही वेतन के
रीते तर होने से
पहले ही मन के
सपने में जरा देर
घुंघरू ज्यों छनके