कबीर वाणी
अनुवाद : प्रेम :
जिन मन प्रीत न प्रेमरस
जिह्वा मैं नैं राम
उन नर ये संसार मैं
पैद भइ्र्रं बेकाम
प्रेम न बाड़ मैं पैद हूं
प्रेम न हाट बेचीं
सीस दिबेर राजा प्रजा
सबै लि जै सकनीं
कबिरा यो घर प्रेम वा्ल
कैंजा को घर नैं
सीस उतारि भैं में धरौ जो,
ऐ जौ घर मैं