लोककथा : सराद क बिराउ :
हिंदी अनुवाद : साल भर बाद बुढि़या के वार्षिक श्राद्ध का दिन आया।
बहू उठकर सुबह तड़के ही पड़ोस के नीचे वाले घर में पहुँची। ”अजी आज
तुमसे एक चीज मांगने के लिए आई हूँ। थोड़ी देर के लिए अपनी बिल्ली
हमें दे दो।“ बहू बोली। नीचे के मकान की देबुआ की माँ ने पूछाः ”अरे,
आज सुबह ही बिल्ली की जरूरत आ पड़ी।“ ”
“क्या करूँ जी,“ बहू ने उत्तर दिया, ”कल सायं कुछ ध्यान सा रहा नहीं।
आज सास का श्राद्ध है। जब तक वे जीवित थीं ससुर जी के श्राद्ध के दिन
प्रातः ही बिल्ली को टोकरी के नीचे रख देतीं और तब श्राद्ध की सामग्री तैयार
करती थीं। मैं भी वैसा ही करती। घर में अब बिल्ली तो है नहीं। मैंने सोचा,
तुम्हारे घर से श्राद्ध की बिल्ली मांग लाऊँ। टोकरी घर में है ही उसे ढकने के लिए।“