विशेष : खड़ीबोली
हिंदी की पहली कहानी ‘रानी केतकी की कहानी’ के लेखक इंशा अल्ला खां
ने भी सदा सुख लाल जी की तरह काॅलेज से बाहर रहकर हिंदी की सेवा की।
काॅलेज की भाषा हिंदोस्तानी थी, पर खां साहब की भाषा में बोली का तत्व
प्रधान होने के कारण अपनापन भी झलकता है और घरेलूपन भी।
खड़ीबोली हिंदी के उन्नायकों में राजाशिवप्रसाद ‘सितारेहिंद’ का नाम इसलिए
लिया जाता है कि उन्होंने अपनी भाषा में जनप्रचलित शब्दों का प्रयोग
किया। इसके विपरीत राजा लक्ष्मण प्रसाद सिंह की भाषा को उद्धृत किया जाता है,
जिसमें तत्सम शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग किया गया है।
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ 1865 की भाषा में भी
तत्सम शब्दावली की सुंदर छटा दिखाई देती है। उनकी तरह पं0 अंबिकादत्त व्यास
सनातन धर्म का प्रतिष्ठा एवं प्रचार के लिए लिखकर खड़ीबोली हिंदी के विकास में
हाथ बंटाया।