सिनेमा : लोरी :
बच्चों के बिना घर में रौनक भी नहीं आती। इन्हें सुलाने के लिए ‘लल्ला
लल्ला लोरी, दूध की कटोरी’ गाने का रिवाज रहा है। फिल्म पूर्णिमा में
महमूद ने ‘लोरी सुना सुनाके सुलाती हैं नारियां, ये मर्द भी कर सकते हैं
अब होगा इम्तिहां’ गाकर नया कीर्तिमान स्थापित किया था; पर लोरियां
स्त्री स्वर में ही सहज लगती हैं।
फिल्म ‘चिराग कहां रोशनी कहां’ की एक लोरी बहुत पसंद की गई थी –
‘टिम टिम करते तारे, ये कहते हैं सारे, सोजा तोहे सपनों में निंदिया पुकारे’।
ऐसी मीठी लोरियों में फिल्म ‘बेटी बेटे’ के लिए गीतकार शैलेन्द्र की ये पंक्तियां
अत्यंत मर्मस्पर्शी बन पड़ी हैं –
आज कल में ढल गया, दिन हुआ तमाम
तू भी सो जा सो गई रंग भरी शाम