लोककथा : सराद क बिराउ :
हिंदी अनुवाद :
एक थी सास और एक थी उसकी बहू। सास ने एक बिल्ली पाल रखी थी।
जब सास चूल्हे में भोजन बनाने बैठती तो बिल्ली भी गुर्र गुर्र करती आकर
अपनी मालकिन के साथ चूल्हे पर बैठ जाती। बिल्ली की आदत ठहरी कभी
किसी बर्तन में मुँह डालती तो कभी किसी में।
अपने ससुराल आने के साल से ही वह देखती कि जिस दिन उसके ससुर का
श्राद्ध होता तो सुबह ही सास एक टोकरी के नीचे बिल्ली को ढक कर रख देती।
जब तक ब्राह्मण आकर श्राद्ध सम्पन्न न करवा ले तब तक बिल्ली उसी तरह
टोकरी के नीचे ढकी रहती। हर साल श्राद्ध के दिन सास सुबह ही टोकरी की ढूँढ
खोज करने लगती बिल्ली को ढकने के लिए।
इसी प्रकार कई साल बीत गये। बहू सयानी हो गई अपनी गृहस्थी चलाने लायक
और सास के भी बाल पककर सफेद हो गये। बुढि़या के अब उस लोक को जाने के
दिन ठहरे, एक बार वह बीमार पड़ी और जाती रही। उसी साल बिल्ली भी मर गई।