गज़ल : ख़्वाब :
कल तक जो दावा करते थे कदम मिलाकर चलने का
आज रोग लग गया उन्हें भीतर ही भीतर जलने का
एक मकान बना छोटा सा चार पेड़ बरबाद हुए
उजड़े कई घोंसले टूटा ख्वाब फूलने फलने का
आशा की किरनों की अगवानी करने की आदत है
गर्दिश का अँधियारा नाम नहीं लेता है टलने का
घने झाड़-झंखाड़ों में अब कौन दिखाएगा रस्ता
नाउम्मीदी के जंगल से बाहर भाग निकलने का